शिव पुराण – वायवीय संहिता – उत्तरखण्ड – 3


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भगवान् शिवकी ब्रह्मा आदि पंचमूर्तियों, ईशानादि ब्रह्ममूर्तियों तथा पृथ्वी एवं शर्व आदि अष्टमूर्तियोंका परिचय और उनकी सर्वव्यापकताका वर्णन

उपमन्यु कहते हैं – श्रीकृष्ण! महेश्वर परमात्मा शिवकी मूर्तियोंसे यह सम्पूर्ण चराचर जगत् किस प्रकार व्याप्त है, यह सुनो।

ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, महेशान तथा सदाशिव – ये उन परमेश्वरकी पाँच मूर्तियाँ जाननी चाहिये, जिनसे यह सम्पूर्ण विश्व विस्तारको प्राप्त हुआ है।

इनके सिवा और भी उनके पाँच शरीर हैं, जिन्हें पंच-ब्रह्म (मन्त्र) कहते हैं।

इस जगत् में कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है, जो उन मूर्तियोंसे व्याप्त न हो।

ईशान, पुरुष, अघोर, वामदेव और सद्योजात – ये महादेवजीकी विख्यात पाँच ब्रह्ममूर्तियाँ हैं।

इनमें जो ईशान नामक उनकी आदि श्रेष्ठतम मूर्ति है, वह प्रकृतिके साक्षात् भोक्ता क्षेत्रज्ञको व्याप्त करके स्थित है।

मूर्तिमान् प्रभु शिवकी जो तत्पुरुष नामक मूर्ति है, वह गुणोंके आश्रयरूप भोग्य अव्यक्त (प्रकृति)-में अधिष्ठित है।

पिनाकपाणि महेश्वरकी जो अत्यन्त पूजित अघोर नामक मूर्ति है, वह धर्म आदि आठ अंगोंसे युक्त बुद्धितत्त्वको अपना अधिष्ठान बनाती है।

विधाता महादेवकी वामदेव नामक मूर्तिको आगमवेत्ता विद्वान् अहंकारकी अधिष्ठात्री बताते हैं।

बुद्धिमान् पुरुष अमित-तेजस्वी शिवकी सद्योजात नामक मूर्तिको मनकी अधिष्ठात्री कहते हैं।

विद्वान् पुरुष भगवान् शिवकी ईशान नामक मूर्तिको श्रवणेन्द्रिय, वाणी, शब्द और व्यापक आकाशतत्त्वकी स्वामिनी मानते हैं।

पुराणोंके अर्थज्ञानमें निपुण समस्त विद्वानोंने महेश्वरके तत्पुरुष नामक विग्रहको त्वचा, हाथ, स्पर्श और वायु-तत्त्वका स्वामी समझा है।

मनीषी मुनि शिवकी अघोर नामक मूर्तिको नेत्र, पैर, रूप और अग्नि-तत्त्वकी अधिष्ठात्री बताते हैं।

भगवान् शिवके चरणोंमें अनुराग रखनेवाले महात्मा पुरुष उनकी वामदेव नामक मूर्तिको रसना, पायु, रस और जलतत्त्वकी स्वामिनी समझते हैं तथा सद्योजात नामक मूर्तिको वे घ्राणेन्द्रिय, उपस्थ, गन्ध और पृथ्वी-तत्त्वकी अधिष्ठात्री कहते हैं।

महादेवजीकी ये पाँचों मूर्तियाँ कल्याणकी एकमात्र हेतु हैं।

कल्याणकामी पुरुषोंको इनकी सदा ही यत्नपूर्वक वन्दना करनी चाहिये।

उन देवाधिदेव महादेवजीकी जो आठ मूर्तियाँ हैं, तत्स्वरूप ही यह जगत् है।

उन आठ मूर्तियोंमें यह विश्व उसी प्रकार ओतप्रोतभावसे स्थित है, जैसे सूतमें मनके पिरोये होते हैं।

शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान तथा महादेव – ये शिवकी विख्यात आठ मूर्तियाँ हैं।

महेश्वरकी इन शर्व आदि आठ मूर्तियोंसे क्रमशः भूमि, जल, अग्नि, वायु, क्षेत्रज्ञ, सूर्य और चन्द्रमा अधिष्ठित होते हैं।

उनकी पृथ्वीमयी मूर्ति सम्पूर्ण चराचर जगत् को धारण करती है।

उसके अधिष्ठाताका नाम शर्व है।

इसलिये वह शिवकी ‘शार्वी’ मूर्ति कहलाती है।

यही शास्त्रका निर्णय है।

उनकी जलमयी मूर्ति समस्त जगत् के लिये जीवनदायिनी है।

जल परमात्मा भवकी मूर्ति है, इसलिये उसे ‘भावी’ कहते हैं।

शिवकी तेजोमयी शुभमूर्ति विश्वके बाहर-भीतर व्याप्त होकर स्थित है।

उस घोररूपिणी मूर्तिका नाम रुद्र है, इसलिये वह ‘रौद्री’ कहलाती है।

भगवान् शिव वायुरूपसे स्वयं गतिशील होते और इस जगत् को गतिशील बनाते हैं।

साथ ही वे इसका भरण-पोषण भी करते हैं।

वायु भगवान् उग्रकी मूर्ति है; इसलिये साधु पुरुष इसे ‘औग्री’ कहते है।

भगवान् भीमकी आकाशरूपिणी मूर्ति सबको अवकाश देनेवाली, सर्वव्यापिनी तथा भूतसमुदायकी भेदिका है।

वह भीम नामसे प्रसिद्ध है (अतः इसे ‘भैमी’ मूर्ति भी कहते हैं)।

सम्पूर्ण नेत्रोंमें निवास करनेवाली तथा सम्पूर्ण आत्माओंकी अधिष्ठात्री शिव-मूर्तिको ‘पशुपति’ मूर्ति समझना चाहिये।

वह पशुओंके पाशोंका उच्छेद करनेवाली है।

महेश्वरकी जो ‘ईशान’ नामक मूर्ति है, वही दिवाकर (सूर्य) नाम धारण करके सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करती हुई आकाशमें विचरती है।

जिनकी किरणोंमें अमृत भरा है और जो सम्पूर्ण विश्वको उस अमृतसे आप्यायित करते हैं, वे चन्द्रदेव भगवान् शिवके महादेव नामक विग्रह हैं; अतः उन्हें ‘महादेव’ मूर्ति कहते हैं।

यह जो आठवीं मूर्ति है, वह परमात्मा शिवका साक्षात् स्वरूप है तथा अन्य सब मूर्तियोंमें व्यापक है।

इसलिये यह सम्पूर्ण विश्व शिवरूप ही है।

जैसे वृक्षकी जड़ सींचनेसे उसकी शाखाएँ पुष्ट होती हैं, उसी प्रकार भगवान् शिवकी पूजासे उनके स्वरूप-भूतजगत् का पोषण होता है।

इसलिये सबको अभय दान देना, सबपर अनुग्रह करना और सबका उपकार करना – यह शिवका आराधन माना गया है।

जैसे इस जगत् में अपने पुत्र-पौत्र आदिके प्रसन्न रहनेसे पिता-पितामह आदिको प्रसन्नता होती है, उसी प्रकार सम्पूर्ण जगत् की प्रसन्नतासे भगवान् शंकर प्रसन्न होते हैं।

यदि किसी भी देहधारीको दण्ड दिया जाता है तो उसके द्वारा अष्टमूर्तिधारी शिवका ही अनिष्ट किया जाता है, इसमें संशय नहीं है।

आठ मूर्तियोंके रूपमें सम्पूर्ण विश्वको व्याप्त करके स्थित हुए भगवान् शिवका तुम सब प्रकारसे भजन करो; क्योंकि रुद्रदेव सबके परम कारण हैं।

(अध्याय ३)


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