शिव पुराण – वायवीय संहिता – पूर्वखण्ड – 9


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महादेवजीके शरीरसे देवीका प्राकट्य और देवीके भ्रूमध्यभागसे शक्तिका प्रादुर्भाव

वायुदेवता कहते हैं – तदनन्तर महादेवजी महामेघकी गर्जनाके समान मधुर-गम्भीर, मंगलदायिनी एवं मनोहर वाणीमें बोले – ‘ब्रह्मन्! तुमने इस समय प्रजाजनोंकी वृद्धिके लिये ही तपस्या की है।

तुम्हारी इस तपस्यासे मैं संतुष्ट हूँ और तुम्हें अभीष्ट वर देता हूँ।’ इस प्रकार परम उदार तथा स्वभावतः मधुर वचन कहकर देवेश्वर हरने अपने शरीरके वामभागसे देवी रुद्राणीको प्रकट किया।

जिन दिव्य गुणसम्पन्ना देवीको ब्रह्मवेत्ता पुरुष परमात्मा शिवकी पराशक्ति कहते हैं तथा जिनमें जन्म, मृत्यु और जरा आदि विकारोंका प्रवेश नहीं है, वे भवानी उस समय शिवके अंगसे प्रकट हुईं।

जिनका परमभाव देवताओंको भी ज्ञात नहीं है, वे समस्त देवताओंकी भी अधीश्वरी देवी अपने स्वामीके अंगसे प्रकट हुईं।

उन सर्वलोकमहेश्वरी परमेश्वरीको देखकर विराट् पुरुष ब्रह्माने प्रणाम किया और उन सर्वज्ञा, सर्वव्यापिनी, सूक्ष्मा, सदसद्भावसे रहित और अपनी प्रभासे इस सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करनेवाली पराशक्ति महादेवीसे इस प्रकार प्रार्थना की।

ब्रह्माजी बोले – सर्वजगन्मयी देवि! महादेवजीने सबसे पहले मुझे उत्पन्न किया और प्रजाकी सृष्टिके कार्यमें लगाया।

इनकी आज्ञासे मैं समस्त जगत् की सृष्टि करता हूँ।

किंतु देवि! मेरे मानसिक संकल्पसे रचे गये देवता आदि समस्त प्राणी बारंबार सृष्टि करनेपर भी बढ़ नहीं रहे हैं।

अतः अब मैं मैथुनी सृष्टि करके ही अपनी सारी प्रजाको बढ़ाना चाहता हूँ।

आपके पहले नारीकुलका प्रादुर्भाव नहीं हुआ था।

इसलिये नारीकुलकी सृष्टि करनेके लिये मुझमें शक्ति नहीं है।

सम्पूर्ण शक्तियोंका आविर्भाव आपसे ही होता है।

अतः सर्वत्र सबको सब प्रकारकी शक्ति देनेवाली आप वरदायिनी माया देवेश्वरीसे ही प्रार्थना करता हूँ, संसारभयको दूर करनेवाली सर्वव्यापिनी देवि! इस चराचर जगत् की वृद्धिके लिये आप अपने एक अंशसे मेरे पुत्र दक्षकी पुत्री हो जाइये।

ब्रह्मयोनि ब्रह्माके इस प्रकार याचना करनेपर देवी रुद्राणीने अपनी भौंहोंके मध्यभागसे अपने ही समान कान्तिमती एक शक्ति प्रकट की।

उसे देखकर देवदेवेश्वर हरने हँसते हुए कहा – ‘तुम तपस्याद्वारा ब्रह्माजीकी आराधना करके उनका मनोरथ पूर्ण करो।’ परमेश्वर शिवकी इस आज्ञाको शिरोधार्य करके वह देवी ब्रह्माजीकी प्रार्थनाके अनुसार दक्षकी पुत्री हो गयी।

इस प्रकार ब्रह्माजीको ब्रह्मरूपिणी अनुपम शक्ति देकर देवी शिवा महादेवजीके शरीरमें प्रविष्ट हो गयीं।

फिर महादेवजी भी अन्तर्धान हो गये।

तभीसे इस जगत् के भीतर स्त्रीजातिमें भोग प्रतिष्ठित हुआ और मैथुनद्वारा प्रजाकी सृष्टिका कार्य चलने लगा।

मुनिवरो! इससे ब्रह्माजीको भी आनन्द और संतोष प्राप्त हुआ।

देवीसे शक्तिके प्रादुर्भावका यह सारा प्रसंग मैंने तुम्हें कह सुनाया।

प्राणियोंकी सृष्टिके प्रसंगमें इस विषयका वर्णन किया गया है।

यह पुण्यकी वृद्धि करनेवाला है, अतः अवश्य सुननेयोग्य है।

जो प्रतिदिन देवीसे शक्तिके प्रादुर्भावकी इस कथाका कीर्तन करता है, उसे सब प्रकारका पुण्य प्राप्त होता है तथा वह शुभलक्षण पुत्र पाता है।

(अध्याय १६)


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