शिव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र - अर्थसहित - जय शम्भो विभो

Shiv Ashtottar Shatnam Stotram


Shiv Ashtottar Shatnam Stotra with Meaning

शिव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र – अर्थ सहित

Shiv Ashtottar Shatnam Stotra

शिव अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र

शिवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्

जय शम्भो विभो रुद्र स्वयम्भो जय शङ्कर।
जयेश्वर जयेशान जय जय सर्वज्ञ कामदम्॥१॥

(१) हे शम्भो! (कल्याणकी भूमि)! आपकी जय हो,
(२) हे विभो (व्यापक)!
(३) हे रुद्र!
(४) हे स्वयम्भो!
(५) हे शंकर! आपकी जय हो।
(६) हे ईश्वर!
(७) हे ईशान!
(८) हे सर्वज्ञ! तथा
(९) हे कामद! (कामनाओंको प्रदान करनेवाले भगवान् शिव!)
आपकी जय हो, जय हो॥१॥

नीलकण्ठ जय श्रीद श्रीकण्ठ जय धूर्जटे।
अष्टमूर्तेऽनन्तमूर्ते महामूर्ते जयानघ॥२॥

(१०) हे नीलकण्ठ!
(११) हे श्रीद (ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले)!
(१२) हे श्रीकण्ठ!
(१३) हे धूर्जटे!
(१४) हे अष्टमूर्ते!
(१५) हे अनन्तमूर्ते!
(१६) हे महामूर्ते!
(१७) हे अनघ!
आपकी जय हो॥ २॥

जय पापहरानङ्गनिःसङ्ग भङ्गनाशन।
जय त्वं त्रिदशाधार त्रिलोकेश त्रिलोचन॥३॥

(१८) हे पापहारी!
(१९) हे अनंगनिःसंग!
(२०) हे भंगनाशन (बाधा तथा भयके नाशक)!
(२१) हे त्रिदशाधार (देवताओंके आधार)!
(२२) त्रिलोकेश (तीनों लोकोंके स्वामी)!
(२३) हे त्रिलोचन!
आपकी जय हो॥३॥

जय त्वं त्रिपथाधार त्रिमार्ग त्रिभिरूर्जित।
त्रिपुरारे त्रिधामूर्ते जयैकत्रिजटात्मक॥४॥

(२४) हे त्रिपथाधार (गंगाजीके आधार)!
(२५) हे त्रिमार्ग (तीनों उपासनापद्धतियोंका अनुसरण करनेवाले)! और
(२६) हे त्रिभिरूर्जित (तीन गुणोंसे शक्तिसम्पन्न)!
(२७) हे त्रिपुरारे!
(२८) हे त्रिधामूर्ते (त्रिमूर्ति)!
(२९) हे एकत्रिजटात्मक (एक जटा तथा तीन जटाधारी)!
आपकी जय हो॥ ४॥

शशिशेखर शूलेश पशुपाल शिवाप्रिय।
शिवात्मक शिव श्रीद सुहृच्छ्रीशतनो जय॥५॥

(३०) हे शशिशेखर (सिरपर चन्द्रमाको धारण करनेवाले)!
(३१) हे शूलेश!
(३२) हे पशुपाल (प्राणियोंके पालक)!
(३३) हे शिवाप्रिय (पार्वतीके प्रिय)!
(३४) हे शिवात्मक (शिवाके शरीरसे अभिन्न)!
(३५) हे शिव!
(३६) हे श्रीद (ऐश्वर्य देनेवाले)! और
(३७) हे सुहृत् (स्नेहयुक्त हृदयवाले)!
(३८) हे श्रीशतनु (भगवान् विष्णुके विग्रह)!
आपकी जय हो॥५॥

सर्व सर्वेश भूतेश गिरिश त्वं गिरीश्वर:।
जयोग्ररूप भीमेश भव भर्ग जय प्रभो॥६॥

(३९) हे सर्व (सर्वस्वरूप)!
(४०) हे सर्वेश (सम्पूर्ण विश्वके स्वामी)!
(४१) हे भूतेश (सम्पूर्ण जीवोंके अधिपति)!
(४२) हे गिरिश! और
(४३) हे गिरीश्वर आपकी जय हो।
(४४) हे उग्ररूप!
(४५) हे भीमेश!
(४६) हे भव!
(४७) हे भर्ग (तेज:स्वरूप प्रभो!
आपकी जय हो॥ ६॥

जय दक्षाध्वरध्वंसिन्नन्धकध्वंसकारक।
रुण्डमालिन् कपाली त्वं भुजङ्गाऽजिनभूषण॥७॥

(४८) हे दक्षाध्वरध्वंसिन् (दक्षके यज्ञको ध्वंस करनेवाले)!
(४९) हे अन्धकध्वंसकारक अन्धकासुरको मारनेवाले)!
(५०) हे रुण्डमालिन् रुण्डमालाधारी)! आप
(५१) कपाली (कपाल धारण करनेवाले हैं)
(५२) हे भुजंगाजिनभूषण आभूषणके रूपमें भुजंग) तथा व्याघ्रचर्म धारण करनेवाले!
(५३) हे अजिनभूषण!
आपकी जय हो॥७॥

दिगम्बर दिशानाथ व्योमकेश चितापते।
जयाधार निराधार भस्माधार धराधर॥८॥

(५४) हे दिगम्बर!
(५५) हे दिशानाथ दिशाओंके स्वामी)!
(५६) हे व्योमकेश!
(५७) हे चितापति (श्मशानवासी)!
(५८) हे आधार (सबके आश्रय)!
(५९) हे निराधार!
(६०) हे भस्माधार! तथा
(६१) हे धराधर (शेषरूपमें पृथ्वीको धारण करनेवाले)
भगवान् शिव आपकी जय हो॥ ८॥

देवदेव महादेव देवतेशादिदैवत।
वह्निवीर्य जय स्थाणो जयायोनिजसम्भव॥९॥

(६२) हे देवदेव!
(६३) हे महादेव!
(६४) हे देवतेश!
(६५) हे आदिदैवत!
(६६) हे वह्निवीर्य!
(६७) हे स्थाणो!
(६८) हे अयोनिजसम्भव
(अजन्मा)! आपकी जय हो॥ ९॥

भव शर्व महाकाल भस्माङ्ग सर्पभूषण।
त्र्यम्बक स्थपते वाचाम्पते भो जगताम्पते॥१०॥

(६९) हे भव!
(७०) हे शर्व!
(७१) हे महाकाल!
(७२ हे भस्मांग (भस्मको शरीरमे लगानेवाले)!
(७३) हे सर्पभूषण (सर्पोंको आभूषणके रूपमें धारण करनेवाले)!
(७४) हे त्र्यम्बक!
(७५) हे स्थपते (शिल्पी)!
(७६) हे वाचाम्पते!
(७७) हे जगताम्पते (संसारके स्वामी)!
आपकी जय हो॥१०॥

शिपिविष्ट विरूपाक्ष जय लिङ्ग वृषध्वज।
नीललोहित पिङ्गाक्ष जय खट्वाङ्गमण्डन॥११॥

(७८) हे शिपिविष्ट (प्रकाशपुंज)!
(७९) हे विरूपाक्ष!
(८०) हे लिंग!
(८१) हे वृषध्वज!
(८२) हे नीललोहित!
(८३) हे पिंगाक्ष!
(८४) हे खट्‌वांगमण्डन (खट्‌वांगधारी)!
आपकी जय हो॥ ११॥

कृत्तिवास अहिर्बुध्न्य मृडानीश जटाम्बुभृत्।
जगद्भ्रातर्जगन्मातर्जगत्तात जगद्गुरो॥१२॥

(८५) हे कृत्तिवास!
(८६) हे अहिर्बुध्न्य!
(८७) हे मृडानीश पार्वतीपति)!
(८८) हे जटाम्बुभृत् (जटाओंमें जल धारण करनेवाले)!
(८९) हे जगद्भ्रातः!
(९०) हे जगन्मात:!
(९१) हे जगत्तात!
(९२) हे जगद्‌गुरो!
आपकी जय हो॥ १२॥

पञ्चवक्त्र महावक्त्र कालवक्त्र गजास्यभृत्।
दशबाहो महाबाहो महावीर्य महाबल॥१३॥

(९३) हे पंचवक्त्र!
(९४) हे महावक्त्र!
(९५) हे कालवक्त्र!
(९६) हे गजास्यभृत् (गणेशके धारण- पोषणकर्ता)!
(९७) हे दशबाहो!
(९८) हे महाबाहो!
(९९) हे महावीर्य!
(१००) हे महाबल!
आपकी जय हो॥१३॥

अघोरघोरवक्त्र त्वं सद्योजात उमापते।
सदानन्द महानन्द नन्दमूर्ते जयेश्वर॥१४॥

(१०१) हे अघोरवक्त्र!
(१०२) हे घोरवक्त्र!
(१०३) हे सद्योजात!
(१०४) हे उमापते!
(१०५) हे सदानन्द!
(१०६) हे महानन्द!
(१०७) हे नन्दमूर्ते!
(१०८) हे ईश्वर!
आपकी जय हो॥१४॥

एवमष्टोत्तरशतं नाम्नां देवदेवकृतं तु ये।
शम्भोर्भक्त्या स्मरन्तीह श्रृण्वन्ति च पठन्ति च॥१५॥

न तापस्त्रिविधस्तेषां न शोको न रुजादय:।
ग्रहगोचरपीडा च तेषां क्वापि न विद्यते॥१६॥

देवदेवद्वारा विरचित भगवान् शिवके
इन १०८ नामोंका जो स्मरण,
श्रवण और पठन करते हैं,
उन्हें तीनों ताप नहीं सताते
(तीनों ताप – दैहिक, दैविक और भौतिक)
तथा
न तो उन्हें कभी शोक, व्याधि और
ग्रहपीडा ही होती है॥ १५- १६॥

श्री: प्रज्ञारोग्यायुष्यं सौभाग्यं भाग्यमुन्नति:।
विद्या धर्मे मति: शम्भोर्भक्तिस्तेषां न संशय:॥१७॥

इसका पाठ करनेवालेको
श्री, प्रज्ञा, आरोग्य, आयुष्य, सौभाग्य,
भाग्य, उन्नति, विद्या, धर्ममें मति और
भगवान् शिवमें भक्ति प्राप्त होती है; इसमें संदेह नहीं है॥ १७॥

॥इति श्रीस्कन्दमहापुराणे
शिवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्रं सम्पूर्णम्॥

इस प्रकार श्रीस्कन्दमहापुराणमें
शिवाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र सम्पूर्ण हुआ॥